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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर -

हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का परिचय हिन्दी के विकास क्रम पर दृष्टि डालने से हम देखते हैं कि हिन्दी से पूर्व प्रचलित भाषाओं में पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश आती हैं। हिन्दी की विकास परम्परा इस प्रकार मानी जाती है -

वैदिक संस्कृत → लौकिक संस्कृत → पालि → प्राकृत → अपभ्रंश → अवहट्ट → हिन्दी।

हिन्दी भाषा के उद्भव पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आस-पास की प्राकृत भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। आचार्य शुक्ल के अनुसार "प्राकृत की अन्तिम अवस्था अपभ्रंश से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है।' अतः हिन्दी के समग्र अध्ययन हेतु हिन्दी पूर्व की भाषाओं में निहित साहित्य परम्परा को जानना समीचीन है।

भारती आर्यभाषा के मध्ययुग में अनेक प्रादेशिक भाषाएँ प्रचलित हो चुकी थीं, इनका सामान्य नाम प्राकृत या प्राकृतें था। इन भाषाओं में रचे गए ग्रंथों को समुच्चय रूप से प्राकृत साहित्य कहा जाने लगा। भाषा वैज्ञानिकों द्वारा भारतीय आर्य भाषा को तीन वर्गों या स्तरों में विभाजित किया गया है।

1. प्राचीन आर्यभाषा - 1000 ई.पू. से 500 ई.पू. तक (संस्कृत - वैदिक, लौकिक)

2. मध्यकालीन आर्यभाषा - मागधी, अर्धमागधी, पैशाची, महाराष्ट्री और अपभ्रंश। इनका काल 500 ई.पू. से 1000 ई. तक माना जाता है।

3. अर्वाचीन या आधुनिक आर्य भाषा - हिन्दी व हिन्दीतर (क्षेत्रीय) भाषाएँ 1000 ई. से वर्तमान तक।

इस तरह से मध्ययुगीन आर्य भाषा के अन्तर्गत ही पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश आती हैं। सर्वप्रथम हम पालि या प्रथम प्राकृत की साहित्य परम्परा पर दृष्टि डालते हैं।

पालि

पालि को भारत की प्रथम देशभाषा होने का गौरव प्राप्त है। इसे भगवान बुद्ध द्वारा उपदेशों हेतु चुना गया था। सम्पूर्ण बौद्ध साहित्य 'पाली' भाषा में रचित हैं। इसे प्रथम प्राकृत भी कहा जाता है। इसका समय 500 ई.पू. से 100 ई. तक माना जाता है। 'पल्लि से पालि शब्द की व्युत्पत्ति मानने पर 'पालि' का अर्ध 'ग्रामीण भाषा' सिद्ध होता है। कुछ विद्वानों द्वारा 'पालि' शब्द का संबन्ध 'पंक्ति' से माना जाता है। बुद्ध वचनों में जो पंक्तियाँ प्रयुक्त की गई हैं उन्हें भी 'पालि' कहा जाता है। कुछ विद्वान पालि को बौद्ध साहित्य का पालन करने या रक्षा करने वाली भाषा मानने के कारण पालित से 'पालि' अर्थ धोतित करते हैं। आचार्य विधुशेखर पालि का अर्थ पंक्ति से मैक्स वालेसर पाटलिपुत्र से, जगदीश कश्यप परियाय ( पालियाय) से भिक्षु सिद्धार्थ पाठ > पाठि से तथा उदयनारायण तिवारी पा + णिम् + लि = पालि शब्द की व्युत्पत्ति बताते हैं। पालि साहित्य में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित तीन महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना हुई है -

1. सुत्तपिटक - इसके अन्तर्गत पाँच निकाय आते हैं। जो इस प्रकार हैं खुद्दक, दीघ, मन्झिम, संयुक्त तथा अंगुत्तर निकाय।
2. विनय पिटक - इसमें संघ संचालन हेतु निहित शिक्षाएँ हैं। विनय पिटक में सम्मिलित ग्रंथ हैं - महावग्ग, चुल्लबग्ग, पाचित्यि, पाराजिक और परिवार।
3. अभिधम्म पिटक - इसके अतिरिक्त अट्टकथा साहित्य, बुद्धघोषकृत विशुद्धिमग, कच्चायन व्याकरण, मोग्गलान व्याकरण तथा सद्यनीति व्याकरण (अग्गवंश) आदि पालि साहित्य की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं।

प्राकृत

श्रमण महावीर ने जिस भाषा में अपने उपदेश दिए वे प्राकृत के प्राचीन स्तर के उत्कृष्ट रूप रहे होंगे। उनके उपदेश की भाषा को क्रमशः मागधी और अर्ध-मागधी कहा गया। पश्चिमोत्तर प्रदेश में शहबाजगढ़ी और मानसेहरा नामक स्थान की शिलाओं पर अंकित प्रशस्तियाँ पैशाची प्राकृत का पूर्वरूप कही जा सकती हैं। संस्कृत नाटकों में प्राकृत का सर्वाधिक उपयोग और वैचित्र्य 'शूद्रक' कृत 'मृच्छकटिकम्' में दिखाई देता है। प्राकृत भाषा हेतु 'प्राकृत प्रकाश' नामक व्याकरण ग्रन्थ की भी रचना हुई है। प्राकृत भाषा साहित्य में अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हेमचन्द्र कृत 'प्राकृत व्याकरण' 12वीं सदी में लिखा गया। प्राकृत का काल पहली सदी से 500 ई. तक माना जाता है। आचार्य हेमचन्द्र प्राकृत को संस्कृत से निकली भाषा स्वीकार करते हैं। पहली सदी से 500 ई. तक उत्तर भारत के भिन्न-भिन्न भागों में प्राकृत भाषा का ही व्यवहार अधिक देखा जाता है।

जैन साहित्य की रचना प्राकृत भाषा में ही हुई है। प्राकृत के प्रथम वैयाकरण वररुचि हैं जिनका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'प्राकृत प्रकाश' है। प्राकृत की तीन स्थितियाँ मानी गई हैं -

1. प्रथम प्राकृत (पालि ) 2 द्वितीय प्राकृत 3. तृतीय प्राकृत (अपभ्रंश )।

भाषा विज्ञान के अन्तर्गत प्राकृत के पाँच प्रमुख भेद माने जाते हैं -

(i) शौरसेनी प्राकृत
(ii) पैशाची प्राकृत
(iii) महाराष्ट्री प्राकृत
(iv) अर्धमागधी प्राकृत
(v) मागधी प्राकृत।

प्राकृत साहित्य - प्राकृत भाषा को 'ठामोकार की भाषा' भी कहते हैं। दिंगबर सम्प्रदत्य तथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रन्थ मूल रूप से प्राकृत साहित्य के अन्तर्गत ही आते हैं। 'जन भाषा समूह' होने के कारण प्राकृत में प्रचुर साहित्य उपलब्ध हैं। संस्कृत नाटाकों में भी निम्न वर्ण के पात्रों द्वारा तथा महिला वर्ग के पात्रों द्वारा प्राकृत शब्दावली ही प्रयुक्त हुई है। प्राकृत को 'प्रेम की भाषा' भी मांना गया है। मध्ययुगीन प्राकृतों का गद्य-पद्यामिक साहित्य विशाल मात्रा में उपलब्ध है। इनमें सबसे प्राचीन अर्धमागधी साहित्य है जिसमें जैन धार्मिक ग्रन्थों की रचना हुई है इन्हें समष्टि रूप में 'जैनागम' या 'जैनश्रुतांग' कहा जाता है। उनके शिष्यों द्वारा उनके उपदेशों को बारह अंगों में संकलित किया गया जो इस प्रकार हैं - 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समयांग 5. भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति 6. न्यायधर्मकला 7. उपासकादशा 8. अंतकृदशा 6. अनुत्तेरोपपातिक 10. प्रश्न व्याकरण 11. विपाकसूत्र 12. दृष्टिवाद।

इसके अतिरिक्त जैन सिद्धान्तों के ग्रन्थ कर्म प्राकृत (षट्खंडागम) व कषायप्राकृत ( कसायपाहुड) उल्लेखनीय हैं।

जैन धर्म के 45 ग्रंथों के अतिरिक्त इन ग्रंथों पर आधारित टीका, चूर्ण, भाष्य वृत्ति आदि व्याख्यात्मक विशाल गद्य पद्यात्मक साहित्य प्राकृत की धरोहर है। जैन धर्म के स्वतंत्र साहित्य की सर्वप्रथम रचना पुष्पदंत व भूतबलि कृत 'कर्म प्राभृत' है। जैन परम्परा का कथात्मक साहित्य भी प्राकृत में ही रचित है। इनमें जैन पुराण शीलांकाचार्य विरचित 'चउपन्नमहपुर सरियं' (चौपन महापुरूष चरित) नामक ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त सोमप्रभाकृत 'सुमतिनाथ चरिता' देव सूरिकृत 'पद्मप्रभचरित', नेमिचन्द्र कृत 'अनंतनाथ 'चरित' आदि प्रमुख हैं। प्राकृत गद्य साहित्य में हरिभद्रसूरिकृत "समरादित्यकथा' महत्त्वपूर्ण है। इसी तरह उद्योतनसूरिकृत 'कुबलय माला' तथा हेमचन्द्रकृत 'कुमार पाल चरित' भी प्राकृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में गणनीय है।

अपभ्रंश

अपभ्रंश का शाब्दिक अर्थ अपभ्रष्ट या बिगड़ा हुआ है। प्राकृत भाषा में पर्याप्त साहित्य रचना होने से वह साहित्य सम्मत बन गई उसका एक गिड़ा हुआ रूप जन समूह में भाषिक प्रयोग हेतु चलन में आने लगा, जिसे 'अपभ्रंश' कहा जाने लगा। इस भाषा को ही 'पुरानी हिन्दी' भी कहा गया है। इस भाषा का काल 500 ई. से लेकर 1000 ई. के मध्य माना जाता है। इसमें साहित्य का आरंभ दवीं सदी (स्वयंभू) से हुआ जो 13वीं सदी तक निरंतर चलता रहा। अपभ्रंश शब्द का शाब्दिक अर्थ जहाँ 'पतन' से लिया जाता है वहीं अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है प्राकृत भाषा से विकसित हुई भाषा विशेष का साहित्य।

अपभ्रंश से आधुनिक आर्य भाषाओं के विकास की स्थिति पर विचार करने पर हम पाते हैं कि अपभ्रंश के विभेदों द्वारा ही आधुनिक हिन्दी की बोलियाँ उद्भूत हुई हैं। अपभ्रंश के भेद व उनसे विकसित आधुनिक भारतीय आर्य भाषा वर्ग इस प्रकार हैं-
1. शौरसेनी अपभ्रंश - पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती।
2. अर्धमागधी अपभ्रंश - पूर्वी हिन्दी, मगही, मैथिली
3. मागधी अपभ्रंश - बिहारी, उड़िया, बंगला, असमियाँ
4. खस - पहाड़ी हिन्दी
5. ब्राचड़ - सिन्धी, पंजाबी
6. महाराष्ट्रीय - मराठी।

इस प्रकार स्वतः सिद्ध है कि अपभ्रंश से ही भारतीय आधुनिक आर्य भाषाओं का विकास हुआ है।

अपभ्रंश साहित्य - अपभ्रंश साहित्य में अपभ्रंश का वाल्मीकि अर्थात् स्वयंभू कृत 'पउम चरिऊ' राम काव्य पर आधारित महत्त्वपूर्ण रचना है। साथ ही धनपाल कृत 'भविष्यत कहा' को अपभ्रंश का प्रथम प्रबन्ध काव्य भी माना जाता है। पुष्पदंत कृत 'महापुराण' 'जसहर चरिऊ आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। सरहपा तथा कण्हवाँ आदि सिद्धों की रचनाएँ 'चर्या पद एवं दोहाकोश आदि द्वारा आदिकाल की समय सीमा (600 ई. से 1300 ई. तक) मानने पर सिद्धों व नाथों की रचनाएँ भी अपभ्रंश साहित्य के ही अन्तर्गत मानी जाती हैं। शुक्ल जी ने भी अपने इतिहास ग्रंथ में सिद्धों, नाथों व जैन चरित काव्यों को अपभ्रंश की श्रेणी में रखा है। उनके अनुसार 'अपभ्रंश' नाम सर्वप्रथम वलभी में राजा धारसेन द्वितीय के शिलालेख में मिलता है।

कुशलराय - अपभ्रंश के प्रमुख चरिउ, पउम चरिउ, पंचमीचरिउ, अरिष्टनेमि चरिउ - कृष्णकाव्य
पुष्पदंत - महापुराण, जयकुमार चरिउ, जसहर चरिउ।
रामसिंह - पाहुड़ दोहा (दार्शनिकता व छंद शास्त्र की रचना )
कुशलराय - ढोला-मारू रा दूहा (विरह काव्य )
जिनदत्त सूरी - उपदेश रसायन सार (रास काव्य )
अब्दुर्रहमान - संदेश रासंक (विरह काव्य) आदि उल्लेखनीय है।

शुक्ल जी के अनुसार आदिकाल में अपभ्रंश की चार साहित्यिक रचनाएँ विजयपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता और कीर्तिपताका भी महत्त्वपूर्ण है।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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